Monday 19 September 2016

स्त्री - भगवान् की अद्भुत रचना







भगवान् को नारी की रचना करने मैं काफी समय लगा| छठा दिन था और अभी भी स्त्री की रचना पूरी नई हुई थी।


यह देखकर सभी देवताओं ने पूछा भगवन आप इस रचना मैं इतना समय क्यों लगा रहे है? यह सुनकर भगवान् मुस्कुराएं और बोले तुमने इसके सभी गुण  देखे है, जो इसकी रचना के लिए महतवपूर्ण है। इसमें हर प्रकार की  परिस्थितियों को संभाल ने की शक्ति है।एक साथ अपने सभी बच्चो  को लाड-प्यार के साथ खुश रख सकती है। यह अपने प्यार की ताकत से बड़े से बडे घाव भर सकती है। इसमें सबसे बड़ा गुण यह है की ये 18 घंटे काम कर सकती है एवं बीमार होने पर अपना ख्याल,देख-भाल स्वयं  ही कर सकती है। देवदूत ये सभी गुण सुनकर चकित रह गए और प्रश्न किआ। क्या ये सब दो हाथो से कर पाना संभव है ?
भगवान ने कहा- यह मेरी अद्भुत रचना है।


देवताओं ने पास जाकर उससे छूकर कहा भगवान् ये रचना तो काफी नाज़ुक है!भगवान् बोले यह कोमल है पर कमजोर नहीं है।इसमें हर तूफ़ान से लड़ने की ताकत है यह बाहर से जितनी नाज़ुक है वक़्त पड़ने  पर  अंदर से उतनी ही कठोर भी। यह हर परिस्थिति को सँभालने में योग्य है। तभी एक देवतागण बोले क्या ये सोच भी सकती है?भगवन ने मुस्कुराकर जवाब दिया यह सोचने के साथ-साथ मजबूत होकर मुकाबला भी कर सकती है।

फिर देवताओं ने स्त्री के गालो को हाथ लगाया और बोले भगवान् यें तो गीलें हैं! भगवान् बोले यह गीलापन इसके आंसू हैं!यह भी इसकी ताकत है। आंसू इसको फरियाद करने, प्यार जताने एवं अपना अकेलापन दूर करने का एक मासूम तरीका है।देवदूत यह सुनकर बोले भगवन आप महान  है अपने सभी कुछ सोच समझकर बनाया है यह रचना वाक्य  मैं ही अद्भुत है। भगवान् ने उत्तर दिया-यह रूप अतुल्य,अद्भुत,एवं अकल्पनीय है। यही हर पुरुष की ताकत है, जो उसे हर स्थिति मैं प्रोत्साहित करती है। ये सभी की ख़ुशी मैं खुश एवं दुःख  मैं दुखी होती है।उसे जो चाहिए, वह लड़कर भी ले सकती है। 
उसके प्यार में कोई शर्त नहीं है। उसका दिल टूट जाता है, जब अपने ही उसे धोखा दे देते हैं, मगर हर परिस्थितियों से समझौता करना भी उसका एक अतुलए गुण है।  देवदूत- भगवान आपकी रचना संपूर्ण है।भगवान् मंद मंद मुस्कुराते हुए बोले
ना, इसमें अभी एक सबसे बड़ी त्रुटि है जोकि मैं नहीं बदल सकता!देवतागण हैरान रह गए और पूछने लगे भगवान कोनसी त्रुटि? भगवान् ने जवाब दिया


'यह अपनी महत्ता,गुरुत्व, महिमा एवं  प्रतिष्ठा भूल जाती है।

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