आकांशा शर्मा : एक रोज रास्ते में एक महात्मा अपने शिष्य के साथ टहल रहे थे | गुरुजी को ज्यादा बातें करना पसंद नहीं था, वे बेहद ही कम बोलने वाले और अपना काम शांतिपूर्वक खत्म करने वालो में से थे |
परन्तु शिष्य को हमेशा इधर-उधर की बातें ही सूझती, उसे दूसरों की बातों में बड़ा ही आनंद आता था.
चलते हुए जब वो तालाब से होकर गुजर रहे थे, तो उन्होंने देखा कि एक शिकारी नदी में जाल डाले हुए है. शिष्य शिकारी को ‘अहिंसा परमोधर्म’ का उपदेश देने लगा.
लेकिन शिकारी कहाँ समझने वाला था, शिष्य और शिकारी के बीच झगड़ा शुरू हो गया. यह झगड़ा देख गुरूजी ने शिष्य को अपने साथ चलने को कहा एवं शिष्य को पकड़कर ले चले.
गुरूजी ने अपने शिष्य से कहा- “बेटा हम जैसे साधुओं का काम सिर्फ समझाना है, लेकिन ईश्वर ने हमें दंड देने के लिए धरती पर नहीं भेजा है!” शिष्य ने पुछा- तो आखिर इसको दण्ड कौन
देगा?”
शिष्य की इस बात का जवाब देते हुए गुरूजी ने कहा- “बेटा! तुम निश्चिंत रहो इसे भी दण्ड मिलेगा … ईश्वर की दृष्टि सब
तरफ है और वो सब जगह पहुँच जाते हैं
इसलिए अभी तुम चलो, इस झगड़े में पड़ना गलत होगा, इसलिए इस झगड़े से दूर रहो..! शिष्य गुरुजी के साथ चल दिया.
इस बात को ठीक दो वर्ष ही बीते थे कि एक दिन गुरूजी और शिष्य दोनों उसी तालाब से होकर गुजरे, उन्होंने उसी तालाब के
पास देखा कि एक साँप बहुत कष्ट में था उसे हजारों चीटियाँ नोच-नोच कर खा रही थीं. शिष्य ने यह दृश्य देखा और उससे रहा नहीं गया,वह सर्प को चींटियों से बचाने के लिए जाने ही वाला था कि
गुरूजी उसे जाने से मना करते हुए कहा-“ बेटा! इसे अपने कर्मों का फल भोगने दो.. यदि अभी तुमने इसे रोकना चाहा
तो इस बेचारे को फिर से दुसरे जन्म में यह दुःख भोगने होंगे क्योंकि कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है..“यह वही शिकारी है जिसे तुम पिछले वर्ष इसी स्थान पर मछली न मारने का उपदेश दे
रहे थे और वह तुम्हारे साथ लड़ने के लिए आग-बबूला हुआ जा रहा था. वे मछलियाँ ही चींटी
है जो इसे नोच-नोचकर खा रही है..”
शिष्य गुरुजी की बात स्पष्ट रूप से समझ चूका था…
ईश्वर हमेशा सही न्याय करते हैं. और उनके न्याय करने का सीधा सम्बन्ध हमारे अपने कर्मों से है. यदि हमने
अपने जीवन में बहुत अच्छे कर्म किये हैं या अच्छे कर्म कर रहे हैं तो उसी के अनुरूप ईश्वर हमारे साथ न्याय करेंगे.
No comments:
Post a Comment