Friday, 13 January 2017

कैसे करें तिल चौथ का उद्यापन


आकांशा शर्मा : तिल चौथ या सकट चौथ  का उद्यापन जिस साल घर में लड़के का जन्म हुआ हो या लड़के की शादी हो उस साल किया जाता हैं। तिल चौथ का उद्यापन के दिन तीन पाव ( 750 ग्राम ) तिल व आधा किलों गुड़ या बूरा लेकर तिलकुट्टा बनाया जाता है। इससे लगभग सवा किलोग्राम तिलकुट्ट बनता है। तेरह सुहागिन महिलाओं को तिलकुट्टा खिलाकर भोजन कराया जाता है। सासु माँ को बायना दिया जाता है। चौदह प्लेट में तिलकुट्ट की की चौदह ढेरियां बनायें । इनके साथ सासु माँ के बायना के लिए साड़ी,ब्लाउज़ व श्रध्दानुसार रूपये रखें।  तिल चौथ की कहानी सुने। श्रद्धा पूर्वक चौथ माता को नमन करके विनती करें और कहें –


”हे चौथ माता ! आपकी कृपा से मैं उद्यापन कर रही हूँ आशीवार्द प्रदान करना। मुझ पर और मेरे परिवार पर कृपा बनाए रखना “

अब सबसे पहले बायना सासू माँ को दें। उनका आशीर्वाद ले। साथ में फल व मिठाई आदि भी दे सकते है । इसके बाद बची हुई तेरह ढेरियों से तेरह सुहागन औरतो को खाना खिलाते समय पहले तिलकुट  परोसें  फिर भोजन करायें । खाना खिलाने के बाद विदा करते समय एक प्लेट में थोड़ा तिलकुट साथ ले जाने के लिए दें।तिल चौथ के उद्यापन के समय जिमाने के लिए  हलवा , पूरी ,सब्जी , मिठाई , नमकीन आदि बनाये जाते है।


सकत चौथ पर कैसे दें चाँद को अर्घ


सकट के चाँद को अर्घ देते समय यह बोलना चाहिए
चंदा हेलो उगीयो , हरिया बांस कटाय ,साजन ऊबा बारने , आखा पाती लाय ,
सोना की सी सांकली गले मोतियां रो हार , तिल चौथ का चाँद ने अरग देवता , जीवो वीर भरतार।


चाँद को अर्घ देने के बाद तिलकुट पर रूपये रख कर बायना निकाल कर सासू  माँ को दें। पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें। अगर  सासू माँ ना हो तो बायना जेठानी या ननद को दिया जा सकता है। इसके बाद पहले टिकुट ग्रहण करें और फिर खाना खाएँ। दूसरे दिन चौथ माता को संभालकर अपने पास रख लें तथा बाकि सभी सामान मंदिर में या ब्राह्मण को दे दें।

Thursday, 12 January 2017

मकर संक्रांति - राशि के अनुसार करें दान


आकांशा शर्मा : संक्रांति के दिन पुण्य काल में दान देना, स्नान करना या श्राद्ध कार्य करना शुभ माना जाता है। इस साल यह शुभ मुहूर्त 14 जनवरी, 2017 को सुबह 7 बजकर 50 मिनट से लेकर दोपहर 05 बजकर 57 मिनट तक का है। मकर संक्रांति पर दान का बहुत महत्व है । इस मकर संक्रांति राशि के अनुसार करें दान जिससे आएगा भाग्ये में बदलाव


मेष : गुड़, मूंगफली दाने एवं तिल का दान दें।


वृषभ : सफेद कपड़ा, दही एवं तिल का दान दें।



मिथुन : मूंग दाल, चावल एवं कंबल का दान दें।


कर्क : चावल, चांदी एवं सफेद तिल का दान दें।




सिंह : तांबा, गेहूं एवं सोने के मोती का दान दें।  

कन्या : खिचड़ी, कंबल एवं हरे कपड़े का दान दें।



तुला : सफेद डायमंड, शकर एवं कंबल का दान दें।


वृश्चिक : मूंगा, लाल कपड़ा एवं तिल का दान दें।


धनु : पीला कपड़ा, खड़ी हल्दी एवं सोने का मोती दान दें।


मकर : काला कंबल, तेल एवं काली तिल दान दें।



कुंभ : काला कपड़ा, काली उड़द, खिचड़ी एवं तिल दान दें।


मीन : रेशमी कपड़ा, चने की दाल, चावल एवं तिल दान दें।
  


Wednesday, 11 January 2017

Lohri Bonfire Customs & Tradition


Akansha Sharma : In the evening, with the setting of the sun, huge bonfires are lit in the harvested fields and in the front yards of houses and people gather around the rising flames, circle around (parikrama) the bonfire and throw puffed rice, popcorn and other munchies into the fire, shouting "Aadar aye dilather jaye" (May honor come and poverty vanish!), and sing popular folk songs. This is a sort of prayer to Agni, the fire god, to bless the land with abundance and prosperity.


After the parikrama, people meet friends and relatives, exchange greetings and gifts, and distribute prasad (offerings made to god). The prasad comprises five main items: til, gajak, jaggery, peanuts, and popcorn. Winter savories are served around the bonfire with the traditional dinner of makki-ki-roti (multi-millet hand-rolled bread) and sarson-ka-saag (cooked mustard herbs).


On the Lohri day everyone gets into their best clothes and is festive. Gifts of sweets are exchanged. The courtyard and rooms of the house are swept and sprinkled with water. As the sun sets, all people dress up in their best and gather around the bonfire. Newly wed ones wear jewelery. The new-born are given little combs to hold. The a burning fagot is brought from the hearth and sets the Lohri bonfire alight. As the flames leap up, the girls throw sesame seed in them and bow. Someone sings:


“Let purity come, dirt depart
Dirt be uprooted and its roots Cast in the fire.

इन 5 कामो से रुष्ट होते है बृहस्पति देव


आकांशा शर्मा : सप्ताह का हर दिन महत्वपूर्ण  होता है। लेकिन गुरुवार का विशेष महत्व है। घर के बड़े बुजुर्ग कुछ काम गुरुवार के दिन नहीं करने की सलाह देते हैं। यह अंधविश्वास भी हो सकता है लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी इन बातो को अहंता कम होती दिख रही है। इन सभी तर्कों को मानना न मानना आप पर निर्भर करता है

बाल धोना : गुरुवार के दिन महिलाओं को बाल धोने का परहेज़ करना चाहिए। महिलाओं की जन्मकुंडली में बृहस्पति पति का कारक होता है। साथ ही बृहस्पति ही संतान का कारक होता है। इस प्रकार अकेला बृहस्पति ग्रह संतान और पति दोनों के जीवन को प्रभावित करता है। बृहस्पतिवार को सिर धोने से बृहस्पति कमजोर होता है जिससे बृहस्पति के शुभ प्रभाव में कमी होती है।



बाल कटाना : इस दिन बाल भी नहीं कटवाना चाहिए। बाल कटवाने का गलत असर घर के सभी सदस्यों के जीवन पर पड़ता है। उनकी उन्नति बाधित होती है।


पोंछा लगाना : बृहस्पति का प्रभाव शरीर पर रहता है। उसी प्रकार से घर पर भी बृहस्पति का प्रभाव उतना ही गहरा होता है। वास्तु अनुसार घर में ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) का स्वामी गुरु होता है। ईशान (उत्तर-पूर्व) कोण का संबंध परिवार के नन्हे सदस्यों यानी बच्चों से होता है। ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) धर्म और शिक्षा की दिशा है। पोछा लगाने से घर का ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) कमजोर होता है। घर के सभी सदस्यों की शिक्षा, धर्म आदि के शुभ प्रभाव में कमी आती है।


नाखून काटना : नाखून गुरुवार को काटना धन हानि का संकेत हैं। इससे घर के मुखिया की तरक्की कम होती है व घर में पीड़ा आती है।


शेविंग करना : जन्मकुंडली में दूसरा और ग्यारहवां भाव धन का स्थान होता हैं। गुरु ग्रह इन दोनों ही स्थानों का कारक ग्रह होता है। गुरुवार के दिन पुरुषो को शेविंग करना भी इसीलिए निषेध है क्योंकि शरीर के बालों को साफ करना गुरुवार के दिन उचित नहीं माना जाता है।

Monday, 9 January 2017

केवल दर्शन से ही मृतक भी हो जाते हैं जीवित




आकांशा शर्मा : मृत व्यक्ति दोबारा जीवित नहीं हो सकता यहीं जीवन का सत्य है,मृत्यु के पश्चात आत्मा शरीर का त्याग कर देती है।  जन्म और मृत्यु भगवान के हाथ में है। लेकिन देहरादून में एक ऐसा स्थान है, जहां पर किसी मृत व्यक्ति को  ले जाया जाए तो वह पुन: जीवित हो जाता है। देहरादून से 128 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लाखामंडल नामक स्थान यमुना नदी की तट पर बर्नीगाड़ नामक जगह से सिर्फ 4-5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है|। समुद्र तल से इस स्थान की ऊंचाई लगभग 1372 मीटर है।

इस मंदिर की खासियत यह है की यहां अगर किसी मृत व्यक्ति को लाया जाये तो वे पुनः जीवित हो जाता है ,लोगो का यह भी कहना है की युधिष्ठिर ने अज्ञातवास के समय यहां शिवलिंग की स्थापना की थी। आज भी यह शिवलिंग महामंडेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। यहां एक खूबसूरत मंदिर का निर्माण भी करवाया गया था।शिवलिंग के सामने दो द्वारपाल पश्चिम की और देखते हुए खड़े हुए दिखाई देते हैं।

माना जाता है कि मंदिर में यदि किसी शव को इन द्वार पालों के सामने रखकर मंदिर का पुजारी जल छिड़के तो वह व्यक्ति कुछ समय के लिए पुन: जीवित हो जाता है। जब वह व्यक्ति जीवित हो जाता है तो उसे गंगाजल दिया जाता है। गंगाजल ग्रहण करने के पश्चात उसकी आत्मा फिर से उसका शरीर त्यागकर चली जाती है। इससे संबंधित रहस्य के बारे में आज तक कोई नहीं जान पाया।


Wednesday, 4 January 2017

क्यों घंटी बजाने से रहता है वातावरण हमेशा शुद्ध


आकांशा शर्मा : मंदिर के बाहर घंटी लगी होती हैं। ये घंटी इस तरीके से लगी होती हैं कि श्रद्धालु ठीक इसके नीचे खड़े होकर घंटी को बजाता है। घंटी  का  बजाने वाले के मस्तिष्क के ऊपर बिचो बीच


होना बहुत ज़रूरी है  क्योंकि घंटी से निकलने वाली ध्वनि हमारे मस्तिष्क की बाईं और दाईं  तरफ से एकरूपता बनाती है। घंटी की सात सेकंड तक की टन्कार हमारे शरीर के सातों आरोग्य केंद्रों को


क्रियाशील कर देती है । जब हमारा ध्यान मंदिर की घंटी की ध्वनि पर केन्द्रित होता है, तो हमारा मन सभी संसारिक विषमताओ से हटकर प्रभु के चरणों मे अर्पित हो जाता है। मंदिर से बाहर आते


समय हम घंटी बजा कर फिर से संसारिक जिम्मेवारियो मे वापस आ जाते है। आरती मे बजाये जाने वाली छोटी घंटी की विशेष प्रतिध्वनि से हमारी पित्त भी सन्तुलित होती है। शायद इसी कारण की


वजह से गऊमाता के गले मे भी घंटी बाँधी जाती है क्योंकि ये सर्वमान्य है गाय मे पित्त ज्यादा होती है! और यही कारण है की इसी प्रकार आरती के बाद शंख बजाया जाता जो की श्रद्धालुओ के लिए

बहुत सुखदायी और स्वास्थ्यवर्धक होता है।


अत: जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती रहती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध व पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां भी हटती हैं, और नकारात्मक शक्ति हटने से

समृद्धि के द्वार खुल जाते हैं।

Monday, 2 January 2017

लड़की की उम्र का कम होना क्यों है ज़रूरी शादी के लिए


आकांशा शर्मा : भारत  देश में अक्सर शादी के लिए लड़के और लड़कियों के बीच उम्र का फासला रखा जाता है। लोग कोशिश करते हैं कि लड़की की उम्र लड़के से कम हो।
आखिर क्यों रखा जाता है उम्र में ये अंतर-
-शादी के लिए उम्र को लेकर एक बॉयोलॉजिकल तर्क है कि पुरुषों में ढलती उम्र के लक्षण महिलाओं की तुलना में देर से नजर आते हैं, जबकि महिलाएं जल्दी उम्रदराज नजर आने लगती हैं,ऐसे में उनकी उम्र कम होना ठीक है।

- लड़कियां अक्सर भावुक होती हैं और क्योंकि लड़के की उम्र लड़की से ज्यादा होने पर वो उसे भावनात्मक सहारा दे सकता है।
- दोनों की उम्र समान होने पर लड़ाई- झगड़े अधिक हो सकते हैं। उम्र का अंतर होने पर रिस्पेक्ट बनी रहती है और झगड़े कम होते हैं।

- उम्र के साथ व्‍यक्ति की सोच विकसित होने लगती है, वह चीजों को अच्‍छे से समझता है और किसी चीज में संतुलन सही तरीके से बना सकता है। क्‍योंकि एज-गैप होने से रिलेशनशिप का संतुलन

बना रहता है।

- शादी के लिए अक्सर नौकरी पेशे वाले लड़के ढूढे जाते हैं, जाहिर है अगर लड़का नौकरी कर रहा है तो उसकी उम्र ठीकठाक होगी।