आकांशा शर्मा : मंदिर के बाहर घंटी लगी होती हैं। ये घंटी इस तरीके से लगी होती हैं कि श्रद्धालु ठीक इसके नीचे खड़े होकर घंटी को बजाता है। घंटी का बजाने वाले के मस्तिष्क के ऊपर बिचो बीच
होना बहुत ज़रूरी है क्योंकि घंटी से निकलने वाली ध्वनि हमारे मस्तिष्क की बाईं और दाईं तरफ से एकरूपता बनाती है। घंटी की सात सेकंड तक की टन्कार हमारे शरीर के सातों आरोग्य केंद्रों को
क्रियाशील कर देती है । जब हमारा ध्यान मंदिर की घंटी की ध्वनि पर केन्द्रित होता है, तो हमारा मन सभी संसारिक विषमताओ से हटकर प्रभु के चरणों मे अर्पित हो जाता है। मंदिर से बाहर आते
समय हम घंटी बजा कर फिर से संसारिक जिम्मेवारियो मे वापस आ जाते है। आरती मे बजाये जाने वाली छोटी घंटी की विशेष प्रतिध्वनि से हमारी पित्त भी सन्तुलित होती है। शायद इसी कारण की
वजह से गऊमाता के गले मे भी घंटी बाँधी जाती है क्योंकि ये सर्वमान्य है गाय मे पित्त ज्यादा होती है! और यही कारण है की इसी प्रकार आरती के बाद शंख बजाया जाता जो की श्रद्धालुओ के लिए
बहुत सुखदायी और स्वास्थ्यवर्धक होता है।
अत: जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती रहती है वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध व पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां भी हटती हैं, और नकारात्मक शक्ति हटने से
समृद्धि के द्वार खुल जाते हैं।
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