एक बार भगवान विष्णु जी ने धरती पर घुमने का विचार मन में किया | स्वामी को त्यार होता देख कर लक्ष्मी मां ने पुछा ! आज सुबह सुबह कहा जाने कि तैयारी हो रही है ?? विष्णु जी ने कहा धरती लोक पर घुमने जा रहा हूँ , तभी माँ लक्ष्मी बोली हे देव क्या मै भी आप के साथ चल सकती हूँ ???? विष्णु भगवान् ने सोचा और बोले एक शर्त पर, तुम मेरे साथ चल सकती हो तुम धरती पर पहुँच कर उत्तर दिशा की ओर बिलकुल मत देखना,माँ लक्ष्मी ने स्वीकार किआ और चलने को त्यार होगयी | जब माता लक्ष्मी और भगवान् विष्णु पहुँचे तो चारो ओर हरियाली ही हरियाली थी, उस समय चारो ओर बहुत शान्ति थी, ओर धरती बहुत ही सुन्दर दिख रही थी, मां लक्ष्मी धरती को देख रही थी, ओर भुल गई कि पति को क्या वचन दे कर आई है? और चारो ओर देखती हुई कब उत्तर दिशा की ओर देखने लगी पता ही नही चला। वहीं उत्तर दिशा की ओर एक सुंदर बगीचा था,मां लक्ष्मी बिना सोचे समझे उस खेत में गई ओर एक सुंदर सा फ़ुल तोड लाई, जब माँ लक्ष्मी वापिस स्वर्गलोक पहुंचीं तो उन्होंने देखा की विष्णु जी के आँखों में आँसू थे माँ लक्ष्मी ने पूछा की स्वामी आप रो क्यों रहे हो तब भगवन बोले कभी भी किसी से बिना पुछे उस का कुछ भी नही लेना चाहिये, ओर साथ ही अपना वचन भी याद दिलाया।
माँ लक्ष्मी को अपनी भूल का बहुत पछतावा हुआ... वे बोली स्वामी पश्चाताप का कोई तो तरीका होगा आप बताएं, मझे माफ़ करदें मुझसे भूल होगयी भगवान विष्णु ने कहा तुम ने जो भुल की है उस की सजा तो तुम्हे जरुर मिलेगी?? जिस माली के खेत से तुम ने बिना पुछे फ़ुल तोडा है, यह एक प्रकार की चोरी है, इस लिये अब तुम तीन साल तक माली के घर नोकर बन कर रहॊ, उस के बाद मै तुम्हे स्वर्ग मे वपिस बुलाऊंगा, मां लक्ष्मी ने चुपचाप सर झुका कर हां कर दी |
मां लक्ष्मी एक साधारण ओर गरीब औरत बन कर उस खेत के मालिक के घर गई मालिक का नाम माधव था, माधव की बीबी, दो बेटे ओर तीन बेटिया थी , सभी उस छोटे से खेत में काम करके किसी तरह से गुजारा करते थे,माधव ने पुछा बहिन तुम कोन हो? और इस समय तुम्हे क्या चाहिये? तब मां लक्ष्मी ने कहा ,मै एक गरीब औरत हूँ मेरी देख भाल करने वाला कोई नही, मेने कई दिनो से खाना भी नही खाया मुझे कोई भी काम देदॊ, साथ में मै तुम्हरे घर का काम भी कर दिया करुँगी , बस मुझे अपने घर में एक कोने में आसरा देदो? माधाव बहुत ही अच्छे दिल का मालिक था, उसे दया आ गई , लेकिन उस ने कहा, बहिन मै तो बहुत ही गरीब हूँ , मेरी कमाई से मेरे घर का खर्च मुश्किल से चलता है, लेकिन अगर मेरी तीन की जगह चार बेटियाँ होती तो भी
मैने गुजारा करना था, अगर तुम मेरी बेटी बन कर जैसा रुखा सुखा हम खाते है उस मै खुश रह सकती हो तो बेटी अन्दर आ जाओ।
जिस दिन मां लक्ष्मी माधव के घर आई थी उस से दुसरे दिन ही माधाव को इतनी आमदनी हुई फ़ुलो से की शाम को एक गाय खरीद ली,फ़िर धीरे धीरे माधव ने काफ़ी जमीन खारीद ली, ओर सब ने अच्छे अच्छे कपडे भी बनवा लिये, ओर फ़िर एक बडा पक्का घर भी बनवा लिया, बेटियो ओर बीबी ने गहने भी बनवा लिये |
एक दिन माधव जब अपने खेतो से काम खत्म करके घर आया तो उस ने अपने घर के सामने दुवार पर एक देवी स्वरुप गहनो से लदी एक औरत को देखा, ध्यान से देख कर पहचान गया अरे यह तो मेरी मुहं बोली चौथी बेटी यानि वही औरत है, और पहचान गया कि यह तो मां लक्ष्मी है |
माधव बोला हे मां हमे माफ़ कर हमने तेरे से अंजाने में ही घर और खेत में काम करवाया, है मां यह केसा अपराध होगया, हे मां हम सब को माफ़ कर दो
अब मां लक्ष्मी मुस्कुरायी और बोली हे माधव तुम बहुत ही अच्छे और दयालु व्यक्ति हो, तुम ने मुझे अपनी बेटी की तरह से रखा, अपने परिवार के सदस्या की तरह से, इस के बदले में तुम्हे वरदान देती हूँ कि तुम्हारे पास कभी भी खुशियो की और धन की कमी नही रहेगी तुम्हे सारे सुख मिलेंगें जिसके तुम हकदार हो,
और फ़िर मां अपने स्वामी के दुवारा भेजे रथ में बैठकर स्वर्ग चली गई |
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