विभूति मात्र एक राख नहीं है जो पूजा के बाद माथे पर लकीर बनी रह जाए। विभूति एक बहुमूल्य राख है जो कि एक विशेष प्रकार की लकड़ी को जलाने के बाद प्राप्त होती है। विभूति को गाय के गोबर या फिर चावल की भूसी से भी प्राप्त किया जा सकता है।
विभूति को आमतौर पर भगवान शिव के साथ जोड़ा गया है क्योंकि वह अपने पूरे शरीर पर इस पवित्र राख को लगाते थे। विभूति के कई सारे आध्यात्मिक महत्व भी हैं। भस्म शब्द का अर्थ है “पाप नष्ट करनेवाला और ईश्वर को स्मरण करनेवाला” | ‘भ’ से आशय है, ‘भत्सर्नम्’ (नष्टकरना) और ‘स्म’ से ‘स्मरणम्’ (स्मरणकरना) का आशय है | अतः भस्म लगाने का अभिप्राय है – अमंगल का नाश और दिव्यता का स्मरण | भस्म को ‘विभूति’ भी कहते हैं (जिसका अर्थ है – गौरव), क्योंकि यह लगाने वाले को ‘गौरव’ प्रदान करती है |
विभूति को भस्मा के रूप में भी जाना जाता है, जिसका बहुत बड़ा औषधीय महत्व है। यह शरीर से अत्यधिक नमी को बाहर निकाल कर सोख लेता है और सिरदर्द तथा ठंड से बचाता है। इसे साधू साबुन की जगह पर नहाने के लिये प्रयोग में इसलिये लाते हैं क्योंकि इससे त्वचा अच्छी तरह से साफ हो जाती है।
विभूति भगवान शिव का एक पसंदीदा समान है।भस्म का उपयोग एक औषधि के रूप में भी होता है | बहुत सी आयुर्वेदिक औषधियों में इसका प्रयोग किया जाता है | यह शारीर की फालतू नमी को सोख लेती है और सर्दी, जुकाम, सिरदर्द आदि नहीं होने देती | उपनिषदों के अनुसार, मस्तिष्क पर भस्म लगाते समय, प्रसिध्द ‘मृत्युञ्जय मन्त्र’ का उच्चारण करना चाहिए :-
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीयमामृतात् ||
यह इस ब्रह्मांड में सबसे पवित्र और शुद्ध चीज़ के रूप में मानी जाती है। इसे भगवान शिव अपने पूरे शरीर पर लगाते थे।
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