आकांशा शर्मा : उपवास रखने की परम्परा युगों से चली आ रही है. हिन्दू ग्रंथो में उपवास रखने और खोलने के नियमों का उल्लेख किया गया है. उपवास रखने से शारीरिक व् मानसिक रोग दूर होते हैं, मानसिक रोग दूर होते हैं. उपवास रखने की परम्परा आदि काल से चली आ रही है. आदि काल से ही मन की शान्ति या किसी इच्छा की प्राप्ति से लिए उपवास किया जाता है. महात्मा बुद्ध ने भगवान् की प्राप्ति के लिए उपवास किये थे. अगर हम पौराणिक समय में जाते हैं तो भगवान् राम ने सागर के सामने अपनी वानर सेना को रास्ता देने के लिए उपवास किया था.
देवी पार्वती ने शिव के साथ विवाह करने के लिए उपवास किया था.उपवास करना शरीर के रोगों के लिए बहुत उत्तम रहता है. पेट से सभी बीमारियाँ आरम्भ होती हैं. मन और पेट पर नियंत्रण करने से हमारे सभी रोग समाप्त हो जाते हैं. यदि हम जानवरों की तरफ देखें तो उपवास करने में हमारी आस्था और भी अधिक हो जाती है. पंछी तथा अन्य जानवर जैसे गाय कुता आदि जब बीमार पड़ते हैं तो वे सब खाना छोड़ देतें हैं. और कुछ हे समय में वे ठीक हो जाते हैं.
इसी तरह से बीमारी में हमारे मुंह का स्वाद ख़त्म हो जाता है. हम खाना कम खाना चाहते हैं. खाना खाने को हमारा मन नही करता है.लकिन डॉक्टर खाना खाने की सलाह देतें हैं.
पानी के आलावा किसी भी तरह का ठोस खाना न खाने को उपवास कहते हैं.जरूरत से ज्यादा खाना खाने के बुरे नतीजे से बचने का सबसे आसान तरीका उपवास है. उपवास करने से शरीर में रोग पैदा करने वाले तत्व बाहर निकल जाते हैं. आराम शरीर के लिए सबसे जरुरी है उपवास. शरीर के अंगों को काम करने की ताकत मिलती है. शरीर के अंग आगे काम करने के लिए ताकतवर हो जाते हैं. ह्रदय को आराम मिलता है.
उपवास के दिनों में जीभ व् सांस् लेने की दशा में परिवेर्तन हो जाता है. जीभ से रोगी दशा का पता चलता है.जैसे-जैसे हमारी भूख बढती जाती है और उपवास तोड़ने का समय नजदीक आता है हमारी जीभ का रंग बदल जाता है. जीभ का रंग गुलाबी हो जाता है. सांस् में एक विशेष तरह की खुशबु आ जाती है.
ऐसा माना जाता है की उपवास कष्ट देता है. यह बात सच है लकिन हम उपवास को जितना अधिक कष्टदायक मानते हैं उपवास उतना अधिक कष्टदायक नहीं होता है.
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