Friday 25 November 2016

क्यों करते है आरती


आकांशा शर्मा  : आरती का अर्थ होता है –  भगवान को याद करना | आरती, पूजा के अंत में धूप, दीप, कर्पूर से की जाती है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। हिंदू धर्म में अग्नि को शुद्ध माना गया है। पूजा

के अंत में जलती हुई लौ को आराध्य देव के सामने एक विशेष विधि से घुमाया जाता है।


आरती चार प्रकार की होती है
1- दीप आरती: दीपक लगाकर  संसार के लिए प्रकाश की प्रार्थना करते हैं।
2- जल आरती: जल जीवन का प्रतीक है।जीवन रूपी जल से भगवान की आरती करते हैं।
3- धूप, कपूर, अगरबत्ती से आरती: धूप, कपूर और अगरबत्ती सुगंध का प्रतीक है। यह वातावरण को सुगंधित करते हैं
4- पुष्प आरती: पुष्प सुंदरता और सुगंध का प्रतीक है।इसलिए पुष्प से आरती की जाती है।


 आरती से  वातावरण पवित्र होता है। आरती के पश्चात मंत्रों द्वारा हाथों में पुष्प लेकर भगवान को पुष्प समर्पित किए जाते हैं तथा प्रार्थना की जाती है।
पूजा में आरती का महत्व इतना है कि अगर कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता, पूजा की विधि नहीं जानता लेकिन सिर्फ आरती कर लेता है तो भगवान उसकी पूजा  स्वीकार कर लेते हैं।
 यदि भक्त अंतर्मन से ईश्वर को पुकारता  हैं, तो यह पंचारती कहलाती है। आरती हर दिन में एक से पांच बार की जाती है। इसे हर प्रकार के धामिक समारोह एवं त्यौहारों में पूजा के अंत में करते हैं।


आरती करने का समय

1-मंगला आरती. 2- श्रृंगार आरती. 3- राजभोग आरती. 4-संध्या आरती 5-शयन आरती

1- मंगला आरती - यह आरती भगवान् को सूर्योदय से पहले उठाते समय करनी चाहिए.
2- श्रृंगार आरती - यह आरती भगवान् का श्रृंगार करते हुए की जाती है
3- राजभोग आरती - यह आरती दोपहर को भोग लगाते समय करनी चाहिए,और भगवान् जी की आराम की व्यवस्था कर देनी चाहिए.
4- संध्या आरती - यह आरती शाम को भगवान् जी को उठाते समय करनी चाहिए.
5- शयन आरती - यह आरती भगवान् जी को रात्री में सुलाते समय करनी चाहिए.



आरती प्रभु आराधना का एक अनन्य भाव है। पूजा के बाद आरती करने का महत्व इसलिए भी है कि यह भगवान के उस उपकार के प्रति आभार है जो उसने हमारी पूजा स्वीकार कर किया और उन गलतियों के लिए क्षमा आराधना भी है जो हमसे पूजा के दौरान हुई हों।


आरती से उन सभी जानी-अनजानी भूलों के लिए क्षमा प्रार्थना भी करते हैं। आरती भावनाओं की अभिव्यक्ति तो है ही साथ ही इसमें संपूर्ण सृष्टि का सार और विज्ञान भी है।

जब हम भगवान की सेवा सेवक भाव से करते हैं तो इससे हमारे अहंकार का भी नाश होता है और मन निर्मल होता जाता है।

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