Monday, 26 September 2016

आखिर क्यों लेना पड़सकता है पशु योनि में जन्म?






आकांशा शर्मा - हिन्दू शास्त्रो के अन्तर्गत कुछ ऐसे दिनों का वर्णन किया गया है जिसमें किसी दूसरें के घर का अन्न खाने से मिलता है पशु योनि में जन्म|शास्त्रो में वर्णन किये गए दिनों में दूसरे के घर का अन्न ग्रहण करना बहुत ही अशुभ फलदायी होता है|

लोगो का मानना है की ऐसा करने से व्यक्ति द्वारा किये गए सारे पुण्य नष्ट हो जाते है|और अगले जन्म में पशु के रूप में जन्म लेकर उसी व्यक्ति के घर में जीवन व्यतीत करना पड़ता है|

शास्त्रो के अनुसार इन दिनों करें दूसरों के घर के अन्न का परहेज़  

1- ग्रहण
पुराणों के अनुसार ग्रहण के दिन किसी दूसरे के घर का अन्न नहीं खाना चाहिए।लोगो का यह मानना है की इस दिन अगर दूसरे का अन्न खाया जाए तो मनुष्य द्वारा किये गए बारह वर्ष के पुण्य समाप्त हो जाते है|

2- अमावस्या तिथि
शास्त्रो में कहा गया है की अगर कोई व्यक्ति अमावस्या तिथि के दिन अपने घर के अलावा किसी और के घर का अन्ना खता है तो उसका किया हुआ पुरे महीने का पुण्य ख़त्म हो जाता है,और जिस व्यक्ति के घर का अन्ना ग्रहण किआ जाता है उसको सारा पुण्य मिल जाता है|

3- संक्रांति
सूर्य हर महीने राशियों में परिवर्तन करता है,उसी को हिन्दू ग्रंथो में संक्रांति का नाम दिया गया है|ग्रंथो में किये गए स्कन्द पुराण के वर्णन के मूताबिक इस दिन दूसरे का अन्न खाने से व्यक्ति के महीने भर का पुण्य नष्ट हो जाता है|

4- सूर्ये का उत्तरायण या दक्षिणायन
हिंदु पंचांग के अनुसार एक वर्ष में दो अयन होते हैं. अर्थात एक साल में दो बार सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है और यही परिवर्तन या अयन ‘उत्तरायण और दक्षिणायन कहा जाता है|जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक भ्रमण करता है, तब  यहाँ तक के समय को उत्तरायण कहते हैं|यह समय छ: माह का होता है|तत्पश्चात जब सूर्य कर्क राशि से सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, और धनु राशि में विचरण करता है तब इस समय को दक्षिणायन कहते हैं|इस प्रकार यह दोनो अयन 6-6 माह के होते हैं|लोगो का मन्ना है की जब जब सूर्ये उत्तरायण या दक्षिणायन होता है तब भी दूसरे का अन्न खाना अशुभ माना जाता है|

5- मनुस्मृति (हिन्दू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण एवं प्राचीन धर्मशास्त्र (स्मृति) है)
मनुस्मृति  के अन्तर्गत कहा गया है जो  व्यक्ति सेवा,सम्मान एवं अच्छे भोजन के लालच में दूसरे के घर जाकर भोजन करता है उस व्यक्ति को अगले जन्म में भोजन करवाने वाले के घर में पशु बनकर रहना पड़ता है ।



इन 5 बातो का ध्यान रखकर हम सभी पशु योनि में जन्मे  जाने से बच सकते है||

Friday, 23 September 2016

बदलता मानव


आकांशा शर्मा : दोस्तों कहतें है जैसे जैसे समय बदलता है उसके साथ धीरे-धीरे सब चीज़ें बदलने लगती है,चाहे वो पशु,पक्षी,वस्त्र, या मानव ही क्यों न हो| ये तो हम सब ही जानते है की आज के इंसान में और पहले की इंसानो में बहुत फर्क हुआ करता था,भाषा मे, वेशभूषा में, रहनसहन  में अंतर था| पर आज का इंसान बहुत ही ज़्यादा बदल गया है| आज के समय में लोग अपने दुःख से ज़्यादा दूसरों के सुख से दुखी है| दोस्तों,यही बात हम आज एक कहानी के माध्यम से आप लोगो तक पहुचने की एक छोटी सी कोशिश कर रहे हैं|

एक बार एक गाँव में एक अँधा और एक लंगड़ा रहता था| दोनों की आपस में बिलकुल भी नहीं बनती थी|हर वक़्त लड़ते रहते थे|अक्सर देखा जाता है की दुर्जन किस्म के लोग हमेशा ही छोटी छोटी बातों पर लड़ने के मौके ढूंढते है|एक दिन एक पेड़ के नीचे बैठकर वे दोनों लड़ रहे थे तभी वहां से भ्रमण करती एक देवी की नज़र उनपर पड़ी|
 
देवी उनदोनो को देखकर बहुत दुखी हुई और सोचने लगी ये लोग कितने दुखी है,एक की आँखे नहीं है दूसरे के पैर,बिना आँखों और पैरों के दुनिया में रहना बहुत ही आधा अधूरा सा लगता है| तो वह सोचने लगी क्यूँ न में इन दोनों की समस्या का निवारण करदु अंधे व्यक्ति को आँख और लंगड़े व्यक्ति को पैर देदूं,इससे यह दोनों ही खुश हो जाएंगें और खुशाली से अपना जीवन व्यतीत करेंगें|देवीं आयीं और बोलीं लड़ो मत,और बताओ क्या चाहते हो तुम दोनों|में तुम्हे वरदान देने आयी हूँ| पर वे दोनों ही अखंड गुस्से में थे और जब मनुष्य गुस्से में होता है तब वे बिना कुछ सोचे समझे कुछ बी बोलता है उसकी बुद्धी पर उसका नियंत्रण नहीं रहता और ऐसा ही इन दोनों ने गुस्से के कारण किया| देवी ने पहले लंगड़े से पूछा की तुम क्या चाहते हो तब वे बोला आप अंधे को लंगड़ा करदो| और जब अंधे से पूछा तब वे बोला आप लंगड़े को अंधा करदो| देवी ये सब देखकर चकित रह गयी,वे बहुत उदास हुई और बोली में यहाँ तुम लोगो के कष्टो का निवारण करने आयी थी मेने सोचा तुम लोग बहुत दुखी हो| मुझे लगा था जब में लंगड़े से पूछुंगी क्या चाहते हो तब वे बोलेगा आप मुझे पैर देदो और अंधा बोलेगा आप मुझे आँखे देदो परन्तु तुम दोनों तो स्वयं अपने दुखो से ज़्यादा तो एक दूसरे की ख़ुशी से दुखी हो,तुम दोनों तो एक दूसरे को अनिष्ट करने का वरदान मांगरे हो|
यह कलयुगी इंसान के चरित्र की एक ना बदलने वाली स्थिति है|आज इस कलयुग में दुष्टों की मात्रा सज्जन इंसानो से अधिक है| दुष्ट किस्म के इंसानो की वजह से पुरी सृष्टि को उनके किये दुष्कर्म को भुगतना पड़ता है|ऐसे दुष्ट किस्म के लोग अपने हित के बारे में कम और दुसरो के नष्ट के बारे में ज़्यादा सोचतें है|स्वयं का नुक्सान चाहे हो जाये परन्तु दूसरे का फायदा नहीं होने दे सकते|उनके मस्तिक में नकारात्मकता ज़्यादा भरी होती है|जबकि सज्जन चरित्र वाला व्यक्ति कभी ऐसा नहीं सोचता| वे दोनों भी अगर सज्जन होते तो लंगड़ा व्यक्ति बोलता की आप अंधें को आँख देदो और अँधा व्यक्ति बोलता आप लंगड़े को पैर देदो| सज्जन व्यक्ति हमेशा दुसरो के हित के बारे में सोचता है | वे दुसरो की ख़ुशी में खुश और दुःख में दुखी होता है|
दोस्तों हमारा किसी भी व्यक्ति की कामियों को बढ़ाकर दिखाना नहीं,बल्कि उसको ये समझाने का एक छोटा सा प्रयास है की हम सभी अपने अंदर थोड़ा सा बदलाव लाने की कोशिश करें | 

Wednesday, 21 September 2016

स्त्री की पहचान- सोलह श्रृंगार

आकांशा शर्मा : हिन्दू धर्म के अन्तर्गत एक नारी की पहचान उसके सोलाह श्रृंगार माने जाते है।सोलाह श्रृंगार करने की परंपरा कई वर्षो पुरानी है,इसका वर्णन हिंदुओं के सभी ग्रंथो एवं उपनिषदों में  है। लेकिन दोस्तों हमारी आज की पीढ़ी वास्तिविक  सोलाह श्रृंगार की उस परंपरा से  कहीं कहीं वंचित रह गयी है।आदिकाल से चली आरही है श्रृंगार की परंपरा और आज की युवा पीढ़ी के श्रृंगार मैं ज़मीन आसमान का फर्क देखा जा सकता  है।



सभी ग्रंथों एवं उपिषदों में सोलाह श्रृंगार की परंपरा का वर्णन कुछ इस तरह से किया गया है :
स्नान - सोलह श्रृंगार में स्नान को सबसे पहला पद माना गया है।
वस्त्र - वस्त्रो का  इंसानी जीवन में सदा ही महतवपूर्ण रूप रहा है।युगों से ही मनुष्य ने सर्दी,गर्मी आदि से बचने के लिए कभी वृक्षो की छाल तो कभी पशुओ की खाल को इस्तमाल किया है। धीरे-धीरे समय में  बादलाव आता रहा,लोग  सभ्य बनते गए, और कपड़ो में वैरायटी आती गयी। वस्त्रो को  निखारने लिए उन्में तरह तरह की चीज़ों से सजावट होने लगी। और आज के समय में लोगो ने वस्त्रों को मर्यादा का प्रतीत बना दिया है।

हार- ऐसा मानना है की गले और उसके आसपास की जगह ,में कुछ ऐसे बिंदु  जिनपर दबाव पड़ने से शरीर के कई हिस्सो को लाभ प्राप्त होता है,इसिलए हार पहनने की क्रिया को शुरू किया गया एवं श्रृंगार में एहम दर्जा और श्रृंगार का महत्तवपुर्ण अंग बना दिया गया। 

बिंदी - मस्तक की सुंदरता बढ़ाने में बिंदी का एहम स्थान माना जाता है। हिन्दू शास्त्रों में बिंदी लगाने के पीछे कई तर्क दिए है।स्त्री के लिए बिंदी लगाना सौभाग्ये का प्रतीत माना जाता है।

काजलआँखों की सुंदरता बढ़ाने के लिए काजल का प्रयोग युगों से किया जाता है। काजल का प्रयोग आँखों की दृष्टि बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। लोगो का यह  भी मानना है की आँखों में लगा काजल बुरी नज़र से भी बचाता है।

हाथों हाथों की सुंदरता बढ़ाने के  लिए सदियों से ही फूलों को इस्तमाल करकर अलग अलग रंगों से सजाया जाता है।

नथ - नाक की सुंदरता निखारने के लिए नाक में छेद करकर सूंदर-सूंदर नथ पहनकर उसकी शोभा बढ़ाई जाती है। साथ ही साथ नथ मूहं से सम्बंधित सभी बिंदुओं का सौन्दर्ये बनाये रखने में सहयोग देती है।         
बालो की सजावट - मूहं की सुंदरता निखारने में बालों की एहम भूमिका होती है। बालों की शोभा को बढ़ाने के लिए उन्हें अलग अलग  आकारो से सजाया जाता है


कंचुकी - पुराने समय से स्त्रियां दो तरह के कपडे पहने जाते है- अधोवस्त्र और उत्तरीय। अधोवस्त्र पर कंचुकी पहनने का रिवाज़ है

उबटन-पुराने समय से ही उबटन लगाने की प्रथा है इससे त्वचा को सुगन्धित और कोमल बनी रहती है।


पायल/पाज़ेब - पैरों की सुंदरता बढ़ाने  के लिए पायल का प्रयोग किया जाता है साथ ही इसके मीठे स्वर से चाल में मधुरता प्रतीत होती है।

इत्र -स्त्री के श्रृंगार में इत्र का बहुत ही महत्तवपुर्ण स्थान माना गया है। पुराने समय में फूलो से इत्र बनाया जाता था। इत्र को आकर्षित  करने एवं उत्तेजना  फैलाने के माध्यम से लगा जाता थ।
कंगन- नारी  द्वारा हाथो की कलाई में कंगन पहनने की परंपरा बरसो से चली आरही  है। कंगन पहनना भी सौभाग्य का  प्रतीक बताया गया है। हिन्दू शास्त्रो में कंगन की विशेष रूप से चर्चा है।  

कमरबंध - सोने,चांदी,हीरे   मोती सभी रत्नों का इस्तमाल कर कमरबंध बनाये जाते हैं इसे कमर को निखारने के लिए पहना जाता है।
चरणराग -त्वचा की सुरक्षा के लिए पैर   हाथों पर महेंदी लगाना प्राचीन काल से चलता आरहा है।  ऐसा  माना जाता है की इससे सौन्दर्ये में वृद्धि होती है।

 दर्पण -दर्पण तो स्त्रियों के जीवन व् उनके पुरे श्रृंगार में एहम भूमिका प्रादान करता है,किसी भी चीज़ में कमी रह जाये इसिलए दर्पण देखा जाता हैआजकी युवा पीढ़ी की भाषा में फाइनल टचअप का काम दर्पण करता है