आकांशा शर्मा : हिन्दू धर्म के
अन्तर्गत एक नारी
की पहचान उसके
सोलाह श्रृंगार माने
जाते है।सोलाह श्रृंगार
करने की परंपरा
कई वर्षो पुरानी
है,इसका वर्णन
हिंदुओं के सभी
ग्रंथो एवं उपनिषदों
में है।
लेकिन दोस्तों हमारी
आज की पीढ़ी
वास्तिविक सोलाह
श्रृंगार की उस
परंपरा से
कहीं न कहीं
वंचित रह गयी
है।आदिकाल से चली
आरही है श्रृंगार
की परंपरा और
आज की युवा
पीढ़ी के श्रृंगार
मैं ज़मीन आसमान
का फर्क देखा जा
सकता है।
सभी ग्रंथों एवं
उपिषदों
में
सोलाह
श्रृंगार
की
परंपरा
का
वर्णन
कुछ
इस
तरह
से
किया
गया
है
:
स्नान - सोलह श्रृंगार
में स्नान को
सबसे पहला पद
माना गया है।
वस्त्र - वस्त्रो का इंसानी जीवन में
सदा ही महतवपूर्ण
रूप रहा है।युगों
से ही मनुष्य
ने सर्दी,गर्मी
आदि से बचने
के लिए कभी
वृक्षो की छाल
तो कभी पशुओ
की खाल को
इस्तमाल किया है।
धीरे-धीरे समय
में बादलाव
आता रहा,लोग सभ्य
बनते गए, और
कपड़ो में वैरायटी
आती गयी। वस्त्रो
को निखारने
लिए उन्में तरह
तरह की चीज़ों
से सजावट होने
लगी। और आज
के समय में
लोगो ने वस्त्रों
को मर्यादा का
प्रतीत बना दिया
है।
हार- ऐसा मानना
है की गले
और उसके आसपास
की जगह ,में
कुछ ऐसे बिंदु जिनपर
दबाव पड़ने से
शरीर के कई
हिस्सो को लाभ
प्राप्त होता है,इसिलए
हार पहनने की
क्रिया को शुरू किया गया एवं श्रृंगार में एहम
दर्जा और श्रृंगार
का महत्तवपुर्ण अंग
बना दिया गया।
बिंदी - मस्तक की
सुंदरता बढ़ाने में बिंदी
का एहम स्थान
माना जाता है।
हिन्दू शास्त्रों में बिंदी
लगाने के पीछे
कई तर्क दिए
है।स्त्री के लिए
बिंदी लगाना सौभाग्ये
का प्रतीत माना जाता है।
काजल - आँखों
की सुंदरता बढ़ाने
के लिए काजल
का प्रयोग युगों
से किया जाता
है। काजल का
प्रयोग आँखों की दृष्टि
बढ़ाने के लिए
भी किया जाता
है। लोगो का
यह भी
मानना है की
आँखों में लगा
काजल बुरी नज़र
से भी बचाता
है।
हाथों - हाथों
की सुंदरता बढ़ाने
के लिए
सदियों से ही
फूलों को इस्तमाल
करकर अलग अलग
रंगों से सजाया
जाता है।
नथ - नाक की
सुंदरता निखारने के लिए
नाक में छेद
करकर सूंदर-सूंदर
नथ पहनकर उसकी
शोभा बढ़ाई जाती
है। साथ ही
साथ नथ मूहं
से सम्बंधित सभी
बिंदुओं का सौन्दर्ये
बनाये रखने में
सहयोग देती है।
बालो की सजावट
- मूहं की सुंदरता
निखारने में बालों
की एहम भूमिका
होती है। बालों
की शोभा को
बढ़ाने के लिए
उन्हें अलग अलग आकारो
से सजाया जाता
है
कंचुकी - पुराने समय से
स्त्रियां दो तरह
के कपडे पहने
जाते है- अधोवस्त्र
और उत्तरीय। अधोवस्त्र
पर कंचुकी पहनने
का रिवाज़ है
उबटन-पुराने समय
से ही उबटन
लगाने की प्रथा
है इससे त्वचा
को सुगन्धित और
कोमल बनी रहती
है।
पायल/पाज़ेब - पैरों की सुंदरता
बढ़ाने के
लिए पायल का
प्रयोग किया जाता
है साथ ही
इसके मीठे स्वर
से चाल में
मधुरता प्रतीत होती है।
इत्र -स्त्री के
श्रृंगार में इत्र
का बहुत ही महत्तवपुर्ण स्थान माना गया
है। पुराने समय
में फूलो से
इत्र बनाया जाता
था। इत्र को
आकर्षित करने
एवं उत्तेजना फैलाने के माध्यम
से लगा जाता
थ।
कंगन- नारी द्वारा हाथो की
कलाई में कंगन
पहनने की परंपरा
बरसो से चली
आरही है।
कंगन पहनना भी
सौभाग्य का
प्रतीक बताया गया है।
हिन्दू शास्त्रो में कंगन
की विशेष रूप
से चर्चा है।
कमरबंध - सोने,चांदी,हीरे व मोती
सभी रत्नों का
इस्तमाल कर कमरबंध
बनाये जाते हैं
। इसे कमर
को निखारने के
लिए पहना जाता
है।
चरणराग -त्वचा की
सुरक्षा के लिए
पैर व हाथों पर महेंदी लगाना
प्राचीन काल से
चलता आरहा है। ऐसा माना
जाता है की
इससे सौन्दर्ये में
वृद्धि होती है।
दर्पण -दर्पण तो
स्त्रियों के जीवन
व् उनके पुरे श्रृंगार में एहम
भूमिका प्रादान करता है,किसी भी चीज़ में कमी
न रह जाये
इसिलए दर्पण देखा
जाता हैआजकी युवा
पीढ़ी की भाषा
में फाइनल टचअप
का काम दर्पण
करता है ।
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