Friday, 23 September 2016

बदलता मानव


आकांशा शर्मा : दोस्तों कहतें है जैसे जैसे समय बदलता है उसके साथ धीरे-धीरे सब चीज़ें बदलने लगती है,चाहे वो पशु,पक्षी,वस्त्र, या मानव ही क्यों न हो| ये तो हम सब ही जानते है की आज के इंसान में और पहले की इंसानो में बहुत फर्क हुआ करता था,भाषा मे, वेशभूषा में, रहनसहन  में अंतर था| पर आज का इंसान बहुत ही ज़्यादा बदल गया है| आज के समय में लोग अपने दुःख से ज़्यादा दूसरों के सुख से दुखी है| दोस्तों,यही बात हम आज एक कहानी के माध्यम से आप लोगो तक पहुचने की एक छोटी सी कोशिश कर रहे हैं|

एक बार एक गाँव में एक अँधा और एक लंगड़ा रहता था| दोनों की आपस में बिलकुल भी नहीं बनती थी|हर वक़्त लड़ते रहते थे|अक्सर देखा जाता है की दुर्जन किस्म के लोग हमेशा ही छोटी छोटी बातों पर लड़ने के मौके ढूंढते है|एक दिन एक पेड़ के नीचे बैठकर वे दोनों लड़ रहे थे तभी वहां से भ्रमण करती एक देवी की नज़र उनपर पड़ी|
 
देवी उनदोनो को देखकर बहुत दुखी हुई और सोचने लगी ये लोग कितने दुखी है,एक की आँखे नहीं है दूसरे के पैर,बिना आँखों और पैरों के दुनिया में रहना बहुत ही आधा अधूरा सा लगता है| तो वह सोचने लगी क्यूँ न में इन दोनों की समस्या का निवारण करदु अंधे व्यक्ति को आँख और लंगड़े व्यक्ति को पैर देदूं,इससे यह दोनों ही खुश हो जाएंगें और खुशाली से अपना जीवन व्यतीत करेंगें|देवीं आयीं और बोलीं लड़ो मत,और बताओ क्या चाहते हो तुम दोनों|में तुम्हे वरदान देने आयी हूँ| पर वे दोनों ही अखंड गुस्से में थे और जब मनुष्य गुस्से में होता है तब वे बिना कुछ सोचे समझे कुछ बी बोलता है उसकी बुद्धी पर उसका नियंत्रण नहीं रहता और ऐसा ही इन दोनों ने गुस्से के कारण किया| देवी ने पहले लंगड़े से पूछा की तुम क्या चाहते हो तब वे बोला आप अंधे को लंगड़ा करदो| और जब अंधे से पूछा तब वे बोला आप लंगड़े को अंधा करदो| देवी ये सब देखकर चकित रह गयी,वे बहुत उदास हुई और बोली में यहाँ तुम लोगो के कष्टो का निवारण करने आयी थी मेने सोचा तुम लोग बहुत दुखी हो| मुझे लगा था जब में लंगड़े से पूछुंगी क्या चाहते हो तब वे बोलेगा आप मुझे पैर देदो और अंधा बोलेगा आप मुझे आँखे देदो परन्तु तुम दोनों तो स्वयं अपने दुखो से ज़्यादा तो एक दूसरे की ख़ुशी से दुखी हो,तुम दोनों तो एक दूसरे को अनिष्ट करने का वरदान मांगरे हो|
यह कलयुगी इंसान के चरित्र की एक ना बदलने वाली स्थिति है|आज इस कलयुग में दुष्टों की मात्रा सज्जन इंसानो से अधिक है| दुष्ट किस्म के इंसानो की वजह से पुरी सृष्टि को उनके किये दुष्कर्म को भुगतना पड़ता है|ऐसे दुष्ट किस्म के लोग अपने हित के बारे में कम और दुसरो के नष्ट के बारे में ज़्यादा सोचतें है|स्वयं का नुक्सान चाहे हो जाये परन्तु दूसरे का फायदा नहीं होने दे सकते|उनके मस्तिक में नकारात्मकता ज़्यादा भरी होती है|जबकि सज्जन चरित्र वाला व्यक्ति कभी ऐसा नहीं सोचता| वे दोनों भी अगर सज्जन होते तो लंगड़ा व्यक्ति बोलता की आप अंधें को आँख देदो और अँधा व्यक्ति बोलता आप लंगड़े को पैर देदो| सज्जन व्यक्ति हमेशा दुसरो के हित के बारे में सोचता है | वे दुसरो की ख़ुशी में खुश और दुःख में दुखी होता है|
दोस्तों हमारा किसी भी व्यक्ति की कामियों को बढ़ाकर दिखाना नहीं,बल्कि उसको ये समझाने का एक छोटा सा प्रयास है की हम सभी अपने अंदर थोड़ा सा बदलाव लाने की कोशिश करें | 

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