पद्म एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा का महात्म्य है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि जो व्यक्ति पद्मा एकादशी के दिन उनके वामन अवतार की पूजा करता है वह एक साथ ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की पूजा का फल प्राप्त कर लेते हैं। ऐसा व्यक्ति पृथ्वी लोक में यश और सम्मान प्राप्त करता है तथा मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त करके चन्द्रमा के समान चमकता है।
वामन त्यौहार का इतिहास
राक्षस नरेश महाबली, विष्णु भगवान के भक्त
प्रह्लाद का पौत्र था। वह उदार शासक और महापराक्रमी था। राक्षसी प्रवृत्ति के कारण
महाबलि ने देवदाओं के राज्य को बलपूर्वक छीन लिया था। तब परेशान देवताओं ने भगवान विष्णु
से सहायता की गुहार लगाई। प्रार्थना सुन भगवान श्री विष्णु ने वामन, अर्थात बौने के
रूप में महर्षि कश्यप व उनकी पत्नी अदिति के घर जन्म लिया। एक दिन वामन महाबलि की सभा
में पहुँचे। इस ओजस्वी, ब्रह्मचारी नवयुवक को देखकर सभी उनकी ओर आकर्षित हो गए। महाबलि
ने श्रद्धा से इस नवयुवक का स्वागत किया और जो चाहे माँगने को कहा।
वामन ने तब एक क़दम से पूरी पृथ्वी को ही नाप डाला तथा दूसरे क़दम से आकाश को। अब तीसरा क़दम तो रखने को स्थान बचा ही नहीं था। जब वामन ने बलि से तीसरा क़दम रखने के लिए स्थान माँगा, तब उसने नम्रता से अपना मस्तक ही प्रस्तुत कर दिया। वामन ने अपना तीसरा क़दम मस्तक पर रख महाबलि को पाताल लोक में पहुँचा दिया। बलि ने यह बड़ी उदारता और नम्रता से स्वीकार किया। चूँकि बलि की प्रजा उससे बहुत ही स्नेह रखती थी, इसीलिए श्रीविष्णु ने बलि को वरदान दिया कि वह अपनी प्रजा को वर्ष में एक बार अवश्य मिल सकेगा। अतः जिस दिन महाबलि केरल आते हैं, वही दिन ओणम के रूप में मनाया जाता है। इस त्योहार को केरल के सभी धर्मों के लोग मनाते हैं। पद्मा एकादशी के दिन जो भक्त कमल से वामन भगवान की पूजा करता है उसकी सभी मनोकामना पूरी होती है।
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