आकांशा शर्मा : - हिन्दू पंचांग के
अनुसार भाद्रपद मास के
शुक्लपक्ष की चतुर्दशी
तिथि 15 सितम्बर 2016 को को
अनंत चतुर्दशी का
त्यौहार मनाया जाएगा है। सभी
श्रद्धालुजन उपवास रहकर भगवान
अनंत का नमन
करते है| इस
दिन व्रती को
प्रातः काल स्नान
कर कलश की
स्थापना कर शास्त्रानुसार
भगवान अनंत के
साथ- साथ भगवान
विष्णु और विघ्नहर्ता
गणेश जी का
आवाहन कर उनकी
पूजा करनी चाहिए।व्रत
करने वालों को
इस दिन यह
कथा अवश्य पढ़नी
चाहिए। तभी व्रत
का संपूर्ण फल
मिलता है।यह व्रत
करने से घर-परिवार में आ
रही विपदा दूर
होती है, कई
दिनों से रुके
मांगलिक कार्य संपन्न होते
है। अनंत
चतुर्दशी का मुख्य
महत्व है। (इस
पर्व को गणपति विसर्जन भी
कहा जाता है) यह
दिन गणपति
जी के विसर्जन का दिन
है। इसी दिन
के साथ भगवान गणेश को
विदाई दी जाती
है, एवं उत्साह के साथ
अगले साल आने
का वादा लिया जाता है
अनंत चतुर्दशी
का पर्व हिन्दुओं के साथ-
साथ जैन समाज
के लिए भी
महत्त्वपूर्ण है। जैन
धर्म के दशलक्षण
पर्व का इस
दिन समापन होता
है। जैन अनुयायी
श्रीजी की शोभायात्रा
निकालते हैं और
भगवान का जलाभिषेक
करते हैं।
अनंत चतुर्दशी
व्रत कथा-
प्राचीन काल में
सुमंत नाम का
एक नेक तपस्वी
ब्राह्मण था। उसकी
पत्नी का नाम
दीक्षा था। उसकी
एक परम सुंदरी
धर्मपरायण तथा ज्योतिर्मयी
कन्या थी। जिसका
नाम सुशीला था।
सुशीला जब बड़ी
हुई तो उसकी
माता दीक्षाकी मृत्यु हो गई।
पत्नी के मरने
के बाद सुमंत
ने कर्कशा नामक
स्त्री से दूसरा
विवाह कर लिया।
सुशीला का विवाह
ब्राह्मण सुमंत ने कौंडिन्य
ऋषि के साथ
कर दिया। विदाई
में कुछ देने
की बात पर
कर्कशा ने दामाद
को कुछ ईंटें
और पत्थरों के
टुकड़े बांध कर
दे दिए। कौंडिन्य
ऋषि दुखी हो
अपनी पत्नी को
लेकर अपने आश्रम
की ओर चल
दिए। परंतु रास्ते
में ही रात
हो गई। वे
नदी तट पर
संध्या करने लगे।
सुशीला ने देखा-
वहां पर बहुत-सी स्त्रियां
सुंदर वस्त्र धारण
कर किसी देवता
की पूजा पर
रही थीं। सुशीला
के पूछने पर
उन्होंने विधिपूर्वक अनंत व्रत
की महत्ता बताई।
सुशीला ने वहीं
उस व्रत का
अनुष्ठान किया और
चौदह गांठों वाला
डोरा हाथ में
बांध कर ऋषि
कौंडिन्य के पास
आ गई। कौंडिन्य
ने सुशीला से
डोरे के बारे
में पूछा तो
उसने सारी बात
बता दी। उन्होंने
डोरे को तोड़
कर अग्नि में
डाल दिया, इससे
भगवान अनंत जी
का अपमान हुआ।
परिणामत: ऋषि कौंडिन्य
दुखी रहने लगे।
उनकी सारी सम्पत्ति
नष्ट हो गई।
इस दरिद्रता का
उन्होंने अपनी पत्नी
से कारण पूछा
तो सुशीला ने
अनंत भगवान का
डोरा जलाने की
बात कहीं। पश्चाताप
करते हुए ऋषि
कौंडिन्य अनंत डोरे
की प्राप्ति के
लिए वन में
चले गए। वन
में कई दिनों
तक भटकते-भटकते
निराश होकर एक
दिन भूमि पर
गिर पड़े। तब
अनंत भगवान प्रकट
होकर बोले- 'हे
कौंडिन्य! तुमने मेरा तिरस्कार
किया था, उसी
से तुम्हें इतना
कष्ट भोगना पड़ा।
तुम दुखी हुए।
अब तुमने पश्चाताप
किया है। मैं
तुमसे प्रसन्न हूं।
अब तुम घर
जाकर विधिपूर्वक अनंत
व्रत करो। चौदह
वर्षपर्यंत व्रत करने
से तुम्हारा दुख
दूर हो जाएगा।
तुम धन-धान्य
से संपन्न हो
जाओगे। कौंडिन्य ने वैसा
ही किया और
उन्हें सारे क्लेशों
से मुक्ति मिल
गई।'
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